16 जन॰ 2012

पीहू पीहू में सच है कुछ !

पशु पक्षी अनपढ़ होते हैं ,
फिर भी संवादी होते हैं /
प्रातः काल वो कूक अनूठी ,
मैना फिर तोते से रूठी /

हमने शब्द गढ़े दर पीढी
भाषा उनकी मौन भाव की /
बुलबुल मिश्री प्रेम भाव की ,/

बड़े बड़े ग्रंथों से भी हम
प्रेम भाव को जता न पाए ,
कहाँ कौन वो पूर्ण प्रेम है ,
शब्दों से फिर बता न पाए /

शब्द बने आडम्बर अब ,
बाहर कुछ है अन्दर कुछ ,
सच्चे तो ये पक्षी ही हैं ,
पीहू पीहू में सच है कुछ //

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