28 फ़र॰ 2012

प्रेम लय

वो जब जब ख्वाबों में आती
नए नए रूपों में आती
प्रेम कुञ्ज में बैठे होते
शांत मौन कुछ कहने आतुर
एक शब्द भी कह न पाते
शब्द शब्द ही बने महत्व का
पलकों में जुगनू से दीखते
अश्रु मोती बन ढल जाते
यू सब कहा अनकहा होता
मौन नयन मोती कह जाते
होंठों के कम्पन सी वो लयप्रेमी उस लय में रम जाते //

23 फ़र॰ 2012

दहलीजों के पार बुला ले

चुपके चुपके झाँका करता
चेहरा चाँद नज़र आ जाता
दरवाजे की ओट खड़ा सा
फिर पीछे मैं हट सा जाता /
नयन सजीले नयन झुकाती
मंद मंद वो क्यूँ मुस्काती /तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से
कोमल स्वप्न सलोने लाती /
फूलों पर फिर उड़ें तितलियाँ
बदली गरजे ,गिरे बिजलियाँ
मौन होंठ भी कह ना पाते
कम्पन सा अन्दर भर जाते /
लुका छिपी ये आखिर कब तक
रहूँ खड़ा मैं आखिर कब तक
दूर दूर अब पास बुला ले
दहलीजों के पार बुला ले //


21 फ़र॰ 2012

मै नशे में

शब्दों को बुन कर
भावों को चुनकर
लिखूं एक तराना
वही वह पुराना /
दो प्रेमियों की
फिर वो कहानी
न मेरी जुबानी
न तेरी जुबानी /
मस्ती तुम्हारी
कुछ मस्त में भी ,
बसे यहाँ बस्ती
वही प्रेम मस्ती /
रुनझुन सी पायल
करे दिल को घायल /
नज़र ना हटे ये
ये आँखों का जादू
मजबूर तुम हो
मजबूर मै हूँ /

जहाँ तुम नशे में
वहीँ मै नशे में //

20 फ़र॰ 2012

महा रात्रि ये पार्वती की

चतुर्दशी यह
घोर रात्रि ,
महा रात्रि यह
शिवा रात्रि /
याद फिर वह
नृत्य शिव का
लय-प्रलय को
लीलती सी /
फिर वही वह
घोर रौरव
शिव त्रिनेत्री
शिवा तांडव /
माह फाल्गुन
महा रात्रि
फिर वही वह
शिवा रात्रि /
देख दूल्हा
शिव बना फिर
काल भैरव ,
शिवा रौरव
चल पड़े
नरमुंड कितने !
सुर असुर औ
बुरे कितने !
यही है बारात उसकी
महा रात्रि ये पार्वती की //

18 फ़र॰ 2012

स्वीकार कर ले

ओ पथिक तू सोच खोया
मौन है क्या जाग रोया ?
पीर है ये तीर सी है
आँख गीली नीर सी है /
देख वो भी कहाँ सोती !
रख संजो ले नयन मोती /
जा कहीं मनुहार कर ले
ओ पथिक स्वीकार कर ले
तू अकेला न था सृष्टि का
बूँद भर था उसी वृष्टि का
जा कहीं सत्कार कर ले
प्रेम को स्वीकार कर ले /
ओ विरागी धूमकेतु !
गतिमान तीव्र कहाँ किस हेतु ?
आ यहाँ विश्राम कर ले .
प्रेम को स्वीकार कर ले ,
नृत्य कर ले ,गीत गा ले
छोड़ गति तू धुरी पा ले /
ओ पथिक स्वीकार कर ले ,
जा कहीं मनुहार कर ले /

16 फ़र॰ 2012

न तू अधूरी

न तू अधूरी
न मैं अधूरा
किन्तु कहाँ कैसे हम
कहें स्वयं को पूरा ?
कहीं ,कहीं तो कुछ है
नहीं ,नहीं है मुझ में
कहीं खोजता सा
कहीं खींचता सा ,
नया न कुछ बनाता
नया न कुछ कहता ,
फिर उसी मिलन से
फिर वहीँ समाता /
प्रकृति के नियम सा
फिर रचूँ अधूरा ,
न तू उधर पूरी
न मैं इधर पूरा/

14 फ़र॰ 2012

कहीं तुम दूर बैठे हो

कोई आवाज देता है
कोई फिर याद करता है
कहीं वो दूर होकर भी
वही फरियाद करता है
वो बदली का एक टुकड़ा
या फिर सन्देश उसका है /
ये परिंदे दूर उड़ते हैं
कहीं तुम तक ही जाते हैं ,
उधर ये चाँद कैसा है
कहीं तुम उसके पीछे हो
ये सितारे मुस्कुराते हैं
कहीं इनमे बस गए हो ,
ये गूंजे फूलों पे भंवरे
नया कुछ आज कहते हैं /
ये तितली क्यूँ लगे प्यारी
हवा में खुशबू सी न्यारी /
ये कोंपल कुछ तो कहती है
ये शाखें झूल जाती हैं
कहीं शब्दों में तुम छिप कर
नई कविता में दीखते हो
कहीं तुम दूर बैठे हो
मुझे आवाज देते हो /
तुम्हारे साथ के वो पल
यहीं बस तुम ही थे हर पल ,
वो पल अब उड़ते जाते हैं
वो पल अब याद आते हैं /
कहीं तुम दूर बैठे हो
मुझे आवाज देते हो /

11 फ़र॰ 2012

कभी तुम याद आते हो

कभी तुम याद आते हो
कभी तुम यूँ रुलाते हो
ये ऑंखें आंख से मिलकर
नया रिश्ता बनाती हैं /
कहीं तुम दूर यादों में
कहीं तुम पास बाँहों में
ये ऑंखें कैद करती हैं
ये आँखें भूल न पायें /
कहीं से चाह उमड़ती है
कहीं तितली सी उडती है /
कहीं वो प्यार की बदली
बिना बरसे घुमड़ती है /
बिना गरजे ही कहती है
तुम्हारी याद आती है
मुझे दिल में सताती है
वो दिल में छा ही जाती है /
ये दिल यूँ मचलता है
समंदर लहरों से मचले
ये आँखें यूँ बरसती हैं
की बादल भी बरसता है //
कभी तुम याद आते हो
कभी तुम यूँ रुलाते हो //

10 फ़र॰ 2012

नयन प्रेम

मैने तुझे चाह से देखा !
तुने मुझे चाह से देखा /
नयनों से जब नयन लड़े तो
नयन नीर ने कहा अनकहा /
दूर दूर से दूरी मिटती
नयन दृष्टि फिर क्यूँ हटती /
नयन नीर ही सब कह जाते
नयन ,नयन से प्यास जगाते/
सब कुछ पहले अनजाना था
आज अचानक जान गए सब
जैसे पूर्व जन्म से जाना था
ये सब कैसे हुई प्रतीति
ये रिश्ता तो अनजाना था /
नयन नयन की ये क्या रीत
मेरी हार बन गयी जीत /
आ कुछ बैठ कहीं बतियाएं
प्रेम कुञ्ज में पींग बढ़ाएं /
मौन समीप कहीं कुछ कहूँ
जहाँ जहाँ तू वहीँ बस रहूँ /

7 फ़र॰ 2012

अस्तित्व

आ !
शोर मचा लें ,
दखें जो सब तुझे
तेरे अस्तित्व को
लगे तू भी एक रंग है
उसी इन्द्र धनुष का
व्योम में दृश्यमान !
अभी था
फिर होगा
फिर न होगा /

बात

इधर की बात करते हैं
उधर की बात करते हैं
बात में बात ,बात की बात
हर कविता में ,नयी एक बात
शब्दों को पिरोकर फिर फिर
उन्ही शब्दों से बात करते हैं !

मिटा दें

आ कर बात ,
तिमिर की
उजाले तो हैं ही
यहीं हैं
दीप जला लें वहां
अँधेरे छुपे हैं जहाँ
ढूंढ टुकड़े तिमिर
वहीँ मिटा दें
दीप जला दें !

3 फ़र॰ 2012

रहस्य ही सौंदर्य

आज तुम फिर बिसराओगे ,
समझते हुए भी न समझोगे ,
कहीं दूर टकटकी लगाओगे,
विशाल क्षितिज के उस पार,
दृष्टि तुम्हारी भेदती सी ,
अनंत काल के रहस्य को !
किन्तु फिर वही,फिर वही
झंझावातों में फंसकर ,
तुम फिर अनवरत प्रयासरत ,
अपनी स्थितप्रज्ञता के लिए ,
वही गीता या योग वशिष्ठ ,
तुम्हारे झरे स्वप्नों को
थामते-थामते ,
फिर वही सशक्त ,
रहस्यमय शब्द !
क्योंकि रहस्य ही
तो पूर्ण सौंदर्य है !

कस्तूरी

मैने शब्दों में
बांधा था उसको
भाव प्रकट भी
कर ना पाया
सोचा
कहा
जाना भी था
शब्द कहीं से
मिल ना पाया /
नए नए कोपल
से लगते
शब्दों को मैं
फिर से चुनता
चुन चुन कर भी
जाता न पाया
भाव समेटे इतने
फिर भी
भाव प्रकट भी
कर ना पाया /
लिखे ग्रन्थ ,
पद्य औ गद्य
शब्दों की टंकार
गुंजाई ,
सोचा ,कहा ,जाना
मगर फिर भी
उसको कहीं
प्रकट न पाया /
तभी ,तभी तो
बार बार फिर
रूप बदलते
इसी सृष्टि के कण ,
सूछ्म विराट
विलुप्त भी होते /
किन्तु प्रकट वह
कहीं न होता
सीप मोती सा
छिपा हुआ वह
रहस्य बना वह
सुन्दर होता

शब्द माल को
अर्पित करते
कस्तूरी मृग
जैसे हम
इधर उधर फिर
विचरण करते
भाव सुगंध से
भाव समेटे
किन्तु कहीं वह
प्रकट न पाते //

2 फ़र॰ 2012

"क्या लिखें"

क्या लिखें ,
क्या कहें ,
और सुने
किस को ?
ये जीवन अब ,
बन गया ,
दुनिया का डिस्को !
खाएं पीयें
मौज उड़ायें ,
सो जाएँ /
जिम में जाएँ
वज़न घटायें /
ज्यादा गर सोचा तो
धमनियां बढ़ जाएँगी
जो न सोचा वो सोचोगे
टेंशन बढ़ जाएगी /
इसीलिये भूल जाओ
संस्कृति औ संस्कृत को
मै कोक हूँ वो केक है ,
भूलो पुरातन सब ,
अपना लो यही ,
पेप्सी कोला
कल्चर को //

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