10 फ़र॰ 2012

नयन प्रेम

मैने तुझे चाह से देखा !
तुने मुझे चाह से देखा /
नयनों से जब नयन लड़े तो
नयन नीर ने कहा अनकहा /
दूर दूर से दूरी मिटती
नयन दृष्टि फिर क्यूँ हटती /
नयन नीर ही सब कह जाते
नयन ,नयन से प्यास जगाते/
सब कुछ पहले अनजाना था
आज अचानक जान गए सब
जैसे पूर्व जन्म से जाना था
ये सब कैसे हुई प्रतीति
ये रिश्ता तो अनजाना था /
नयन नयन की ये क्या रीत
मेरी हार बन गयी जीत /
आ कुछ बैठ कहीं बतियाएं
प्रेम कुञ्ज में पींग बढ़ाएं /
मौन समीप कहीं कुछ कहूँ
जहाँ जहाँ तू वहीँ बस रहूँ /

2 टिप्‍पणियां:

आशुतोष की कलम ने कहा…

प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति..लिखते रहे...
इश्वर आप की लेखनी को और प्रखर बनायें..
जय श्री राम

https://ntyag.blogspot.com/ ने कहा…

thanx a lot :)

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