3 सित॰ 2012

आह !

उन्मुक्त गगन 
बादल सघन 
उड़ते पक्षी 
करते नर्तन 
दो पंखो से 
लहराते से ,
असीम आकाश 
 छूने की चाह ,
ओह लघु जीवन !
ओह यह आह !

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

https://ntyag.blogspot.com/ ने कहा…

Thanks :-)

Unknown ने कहा…

अतिसुन्दर , हृदयंगम,
शब्द ने किये जागृत भाव ,....आह!

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