7 फ़र॰ 2012

अस्तित्व

आ !
शोर मचा लें ,
दखें जो सब तुझे
तेरे अस्तित्व को
लगे तू भी एक रंग है
उसी इन्द्र धनुष का
व्योम में दृश्यमान !
अभी था
फिर होगा
फिर न होगा /

बात

इधर की बात करते हैं
उधर की बात करते हैं
बात में बात ,बात की बात
हर कविता में ,नयी एक बात
शब्दों को पिरोकर फिर फिर
उन्ही शब्दों से बात करते हैं !

मिटा दें

आ कर बात ,
तिमिर की
उजाले तो हैं ही
यहीं हैं
दीप जला लें वहां
अँधेरे छुपे हैं जहाँ
ढूंढ टुकड़े तिमिर
वहीँ मिटा दें
दीप जला दें !

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