11 मार्च 2012

"चेहरा "

हर रोज़ नज़र आता , भोला नया सा चेहरा
वो हुस्न की बला सा ,नज़रें गड़ाए चेहरा //
अब एक ही नज़र पे ,वो मुस्कुराये चेहरा
ये मेरी शायरी है ,क्यूँ शरमाये चेहरा //
पेश किया जो गुल को ,गुलाबी हुआ वो चेहरा
दिल को कब औ कैसे ,चुरा गया वो चेहरा //
चेहरे को खूब खोजा , दिखता तुम्हारा चेहरा
हर चेहरे में छुपा सा , ज़ाना तुम्हारा चेहरा //
बाज़ार में तो यूँ भी ,चेहरे पे एक चेहरा
प्याज की वो मानिंद ,अब परत परत चेहरा //
पर वो गुलाब चेहरा ,जाना तुम्हारा चेहरा
नज़रें हटा ना पाऊं ,ये बे-हिजाब चेहरा //
अब आशियाने में भी , लो पुत गया है चेहरा
बहुत हो चूका अब , ज़ाना हटा दे पहरा //
अब ख्वाब आस्मां के , क्यूँ उदास चेहरा
अब उर्दू में कहा है , क्या यूँ ही सुर्ख चेहरा //

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