दरख़्त पे चिड़िया
फुदकती घोसले में बया
अहसास क्यूँ न हुआ /
पत्ते बंधे शाखों से
कैदी बने झुरमुट से
वो चिड़िया मुक्त पक्षी
पत्ते मुक्त भी हुए
तो भी गिरेंगे
कुचले जायेंगे
सोंधी ज़मीनों पे
काश वो भी चिड़िया होते
उनके भी पंख होते
न गिरते न कैदी होते
गाते से उड़ते से
ऊंचे और ऊंचे उन्मुक्त
दूर उसी बंदीगृह से
और उस गिरने की यातना से //