काल के प्रवाह में
भूत भविष्य दाह में
वर्तमान के सत्य
असत्य हुए सब कथ्य ,
जुड़ती खंडित प्रतिमाएं
आओ फिर से रोष जतायें //
सर्व जगत का केंद्र ये मैं
आत्म शक्ति आधार ये मेँ
मेँ ही कहता स्वयं को मेँ
नहीं विलग तुझसे ये मेँ ,
क्षणिक आभासी अलगाव
सदा रहा कल्पों से जुड़ाव //
वो रहस्य सा रुप बदलता
भर्मित ज्ञान चर्चाएं करता
कभी कभी जब लगा जीत सा
पाया समर्पित रहा मीत सा ,
शब्द कीर्तन भजन गुंजार
जिसे समझा ज्ञान ,बस तार तार //
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