3 फ़र॰ 2012

रहस्य ही सौंदर्य

आज तुम फिर बिसराओगे ,
समझते हुए भी न समझोगे ,
कहीं दूर टकटकी लगाओगे,
विशाल क्षितिज के उस पार,
दृष्टि तुम्हारी भेदती सी ,
अनंत काल के रहस्य को !
किन्तु फिर वही,फिर वही
झंझावातों में फंसकर ,
तुम फिर अनवरत प्रयासरत ,
अपनी स्थितप्रज्ञता के लिए ,
वही गीता या योग वशिष्ठ ,
तुम्हारे झरे स्वप्नों को
थामते-थामते ,
फिर वही सशक्त ,
रहस्यमय शब्द !
क्योंकि रहस्य ही
तो पूर्ण सौंदर्य है !

5 टिप्‍पणियां:

आशुतोष की कलम ने कहा…

क्योंकि रहस्य ही
तो पूर्ण सौंदर्य है !
रहस्यमयी सौन्दर्य का सुन्दर वर्णन

https://ntyag.blogspot.com/ ने कहा…

thnx :)

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Vicharniy....Bahut Sunder

https://ntyag.blogspot.com/ ने कहा…

आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद ! मोनिका जी ,रूपचंद जी , आशुतोष जी :)

https://ntyag.blogspot.com/ ने कहा…

धन्यवाद !पियूष जी

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