15 जुल॰ 2018

आई बरखा

आई बरखा
मस्ती  छलकी
मन मयूर मचला
 सुंदरी वो थिरकी/
बूंद बूंद फुहारें                        
बनी नरम चादर 
सूरज भी दुबका
बोल उठे दादुर/
बादल से मिले बादल
टकराए चमकें बिजली
भीग गए वस्त्र सब
मानस में उड़ती तितली/
आ नृत्य देख चंचल 
जा छोड़ सारे दलदल
मस्ती में थिरके भीगा तन
अब खूब मचले मेरा मन/"

23 अप्रैल 2018

प्राण प्रतिष्ठा


 मौन हुआ तो अन्तः शक्ति

बोल उठा तो अभिव्यक्ति /

नेत्र बंद फिर ध्यान लगाया
कल्पित देव , मन में ध्याया /

पूज आराधन  गुण गान
यही सहज था वही महान /

यही ,यही तो मनुष्य भाव है
पत्थर पूजें दिव्य भाव है /

मूर्ति बना यदि पूजा उसको
माना देवता ,भाव शक्ति को /
हम चेतन अव्यक्त रूप थे
प्रेम प्रीति के ऊर्ज रूप थे /
जड़ता के प्रेमी बन बैठे
इस शरीर में व्यक्त हो उठे /

मानो इश्वर कवि जैसा है
ऊर्जस्वित वह रवि जैसा है/

हम चैतन्य जड़ में स्थित
प्रेम प्रीति को करें विस्तरित /

जैसा स्रोत बने हम वैसे


ईश भाव की कविता जैसे //

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