आई बरखा
मस्ती छलकी
मन मयूर मचला
सुंदरी वो थिरकी/
बूंद बूंद फुहारें
बनी नरम चादर
सूरज भी दुबका
बोल उठे दादुर/
बादल से मिले बादल
टकराए चमकें बिजली
भीग गए वस्त्र सब
मानस में उड़ती तितली/
आ नृत्य देख चंचल
जा छोड़ सारे दलदल
मस्ती में थिरके भीगा तन
अब खूब मचले मेरा मन/"