आज तुम फिर बिसराओगे ,
समझते हुए भी न समझोगे ,
कहीं दूर टकटकी लगाओगे,
विशाल क्षितिज के उस पार,
दृष्टि तुम्हारी भेदती सी ,
अनंत काल के रहस्य को !
किन्तु फिर वही,फिर वही
झंझावातों में फंसकर ,
तुम फिर अनवरत प्रयासरत ,
अपनी स्थितप्रज्ञता के लिए ,
वही गीता या योग वशिष्ठ ,
तुम्हारे झरे स्वप्नों को
थामते-थामते ,
फिर वही सशक्त ,
रहस्यमय शब्द !
क्योंकि रहस्य ही
तो पूर्ण सौंदर्य है !
"आज की अभिव्यक्ति "(Hindi Poems) कवि नीरज की दैनिक अभिव्यक्ति का एक अंश मात्र.....Contact 9717695017
3 फ़र॰ 2012
कस्तूरी
मैने शब्दों में
बांधा था उसको
भाव प्रकट भी
कर ना पाया
सोचा
कहा
जाना भी था
शब्द कहीं से
मिल ना पाया /
नए नए कोपल
से लगते
शब्दों को मैं
फिर से चुनता
चुन चुन कर भी
जाता न पाया
भाव समेटे इतने
फिर भी
भाव प्रकट भी
कर ना पाया /
लिखे ग्रन्थ ,
पद्य औ गद्य
शब्दों की टंकार
गुंजाई ,
सोचा ,कहा ,जाना
मगर फिर भी
उसको कहीं
प्रकट न पाया /
तभी ,तभी तो
बार बार फिर
रूप बदलते
इसी सृष्टि के कण ,
सूछ्म विराट
विलुप्त भी होते /
किन्तु प्रकट वह
कहीं न होता
सीप मोती सा
छिपा हुआ वह
रहस्य बना वह
सुन्दर होता
शब्द माल को
अर्पित करते
कस्तूरी मृग
जैसे हम
इधर उधर फिर
विचरण करते
भाव सुगंध से
भाव समेटे
किन्तु कहीं वह
प्रकट न पाते //
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