युग परिवर्तन करें पहरुए
रही विषमता हारे वो जुए
घृणा से बढ़ी और घृणा
रौशनी को छलते हुए /
नकारात्मक में प्रेम कहाँ
भीड़ तंत्र में सत्य कहाँ
आज़ादी हैं ढूंढो बस बुरा
खो गए दर्शन बस मस्त सुरा //
सड़को पे रोष पोस्टर में बिखरा
गालियों में सुख सत्य अखरा ,
संस्कृति सभ्यता राष्ट्र की सोच
उस भीड़ के लिए इसमें भी लोच //
पूर्ण मासी को जब चाँद निखरा
चांदनी को ही ये कहने लगे बुरा
सूर्य के ओज में तो
धुप न गयी सही
स्वार्थ में ओत प्रोत
रौशनी भी चुभ रही //
परखते हुई भीड़ में मीन मेख असंतोष
कैसी अब सोच हुई बस रोष ही रोष //
नव षड्यंत्रों के बीच ,आओ धरें धीरज
आशाएं हो पल्लवित ,दिखे कीचड़ में नीरज /
मिल जुल फिर से आओ ढूंढे ऐसा मंत्र
मधु मक्खी छत्ते सा होये राष्ट्र औ तंत्र //