मौन हुआ तो अन्तः शक्ति
बोल उठा तो अभिव्यक्ति /
नेत्र बंद फिर ध्यान लगाया
कल्पित देव , मन में ध्याया /
पूज आराधन औ गुण गान
यही सहज था वही महान /
यही ,यही तो मनुष्य भाव है
पत्थर पूजें दिव्य भाव है /
मूर्ति बना यदि पूजा उसको
माना देवता ,भाव शक्ति को /
हम चेतन अव्यक्त रूप थे
प्रेम प्रीति के ऊर्ज रूप थे /
जड़ता के प्रेमी बन बैठे
इस शरीर में व्यक्त हो उठे /
मानो इश्वर कवि जैसा है
ऊर्जस्वित वह रवि जैसा है/
हम चैतन्य जड़ में स्थित
प्रेम प्रीति को करें विस्तरित /
जैसा स्रोत बने हम वैसे
ईश भाव की कविता जैसे //