आज तुम फिर बिसराओगे ,
समझते हुए भी न समझोगे ,
कहीं दूर टकटकी लगाओगे,
विशाल क्षितिज के उस पार,
दृष्टि तुम्हारी भेदती सी ,
अनंत काल के रहस्य को !
किन्तु फिर वही,फिर वही
झंझावातों में फंसकर ,
तुम फिर अनवरत प्रयासरत ,
अपनी स्थितप्रज्ञता के लिए ,
वही गीता या योग वशिष्ठ ,
तुम्हारे झरे स्वप्नों को
थामते-थामते ,
फिर वही सशक्त ,
रहस्यमय शब्द !
क्योंकि रहस्य ही
तो पूर्ण सौंदर्य है !
"आज की अभिव्यक्ति "(Hindi Poems) कवि नीरज की दैनिक अभिव्यक्ति का एक अंश मात्र.....Contact 9717695017
3 फ़र॰ 2012
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