शब्दों को बुन कर
भावों को चुनकर
लिखूं एक तराना
वही वह पुराना /
दो प्रेमियों की
फिर वो कहानी
न मेरी जुबानी
न तेरी जुबानी /
मस्ती तुम्हारी
कुछ मस्त में भी ,
बसे यहाँ बस्ती
वही प्रेम मस्ती /
रुनझुन सी पायल
करे दिल को घायल /
नज़र ना हटे ये
ये आँखों का जादू
मजबूर तुम हो
मजबूर मै हूँ /
जहाँ तुम नशे में
वहीँ मै नशे में //
3 टिप्पणियां:
नशा नशावन थी कभीं, आज नशे में धुत्त ।
चूम नशीनी को चढ़ा, प्रेम परम उन्मुक्त ।।
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
नीरजजी, ये नशा आनंददायक है पर यथार्थ का क्या?????
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