ओ आसमान अब नीचे आ जा
इस धरती को यूँ ना तरसा
ना जाने कब से ये धरती
घूम घूम कर ढूंढ रही है
सूर्य देव अब दे वर दे दे
पृथ्वी को अपना प्रिय दे दे /
तुम प्रेम पीर को क्या समझे
वोह आसमान को वर समझे
नित सूर्य अग्नि फेरे चाहत के
नित नए भाव नयी ऋतुओं के /
ये धरती कुछ माँगा करती
क्यूँ बादल से ही अर्ध्य चढ़ाती/
वो जंगल धूँ धूँ क्यूँ जलते
इस धरती के बीचों बीच /
निशा काल में क्यूँ लहराती
ये आँचल सी तारों बीच /
ये धरती की ही विरह अग्नि
क्या दावानल बन जाती है
जब धरती रुक रुक रोती है !
क्या तभी सुनामी आती है ./
ओ चाँद उतर अब नदिया आ जा
इस धरती को कुछ समझा जा
अब रात अमावस यूँ ना खो जा
मिलन करा या पास बुला जा //
4 टिप्पणियां:
sunder ehsaas!!!!!!!!
Bahut hi pyari kavita
बहुत सुन्दर प्रस्तुति... होली की हार्दिक शुभकामनाएँ...
आपके लिए भी यह होली शुभ हो।
एक टिप्पणी भेजें