ईमानदारी धर्म सद्भाव
ठेकेदारों ने खरीदे भाव
चढ़ गए सभी पर मुलम्मे
हावी हैं देखो राजनैतिक निकम्मे
न कोई दर्शन न सिद्धान्त
गरीबी अभाव से अभी भी क्लान्त
युवा चिल्लाते कहाँ रोज़गार
झंडे उठाते नारे लगाते बार बार
पत्थर सी राजनीति
पत्थर उठवाती है
देश भक्त सीनों पर
गोली चलवाती है /
पंचतारा होटल में
देखो वो अय्याश
कितने ही घोटाले
न हुआ पर्दा फ़ाश /
विदेश भागेगा
मिलेगा उसे सकून
वो तोड़ती पत्थर
जलता रहेगा उसका खून /
हथियारों का व्यापारी
देखो एक हुई दुनिया सारी
कर लो सभाएं फोरम में चर्चाएँ
मुनाफ़ा कैसे हो नीति ये बनाएं //
वो तोड़ती पत्थर ,उठाती वज़न
उसे क्या पता क्या धर्म क्या वतन //
ये मुलम्मों के ठेकेदार
करते रहे बस अनाचार
कहीं तो लगेगी दुकान ,बढ़ेगा व्यापार
गरीबों की जमीन पर लगेंगे फिर झंडे
जुलूसों में पड़ेंगे उन पर बस डण्डे //
आ धर्म खेलूं ,खेलूँ ईमानदारी
नये प्रतीकों से ,फलेगी ठेकेदारी
तिकड़मों के बाज़ार ,चीख़ता कामगार
नए नारे सजाता फिर वो ठेकेदार
कभी तो कोई इन्हें फिर से जगा दे
विवेकानन्द के शब्द ------
"माँ मुझे मनुष्य बना दे " //