1 सित॰ 2024

आज की सोच

 युग परिवर्तन करें पहरुए 

रही विषमता हारे वो जुए 

घृणा से बढ़ी और घृणा 

रौशनी को छलते हुए /

नकारात्मक  में  प्रेम कहाँ 

भीड़ तंत्र में सत्य कहाँ 

आज़ादी हैं ढूंढो बस बुरा 

खो गए दर्शन बस मस्त सुरा //

सड़को पे रोष पोस्टर में बिखरा 

गालियों में सुख सत्य अखरा ,

संस्कृति सभ्यता राष्ट्र की सोच 

उस भीड़ के लिए इसमें भी लोच //

पूर्ण मासी को जब चाँद निखरा 

चांदनी को ही ये कहने लगे बुरा 

सूर्य के  ओज में तो 

धुप न गयी सही 

स्वार्थ में ओत प्रोत 

रौशनी भी चुभ रही //

परखते हुई भीड़ में मीन मेख असंतोष 

कैसी अब सोच हुई बस रोष ही रोष //


नव षड्यंत्रों के बीच ,आओ धरें धीरज 

आशाएं हो पल्लवित ,दिखे कीचड़ में नीरज /


मिल जुल फिर से आओ ढूंढे ऐसा मंत्र 

मधु मक्खी छत्ते सा होये राष्ट्र औ तंत्र //

12 नव॰ 2021

बस तार तार

 काल के प्रवाह में 

भूत भविष्य दाह में 

वर्तमान के सत्य 

असत्य हुए सब कथ्य ,

जुड़ती खंडित प्रतिमाएं 

आओ फिर से रोष जतायें //


सर्व जगत का केंद्र ये मैं 

आत्म शक्ति आधार ये मेँ 

मेँ ही कहता स्वयं को मेँ 

नहीं विलग तुझसे ये मेँ ,

क्षणिक आभासी अलगाव 

सदा रहा कल्पों से जुड़ाव //


वो रहस्य सा रुप बदलता 

भर्मित ज्ञान चर्चाएं करता 

कभी कभी जब लगा जीत सा 

पाया समर्पित रहा मीत सा ,

शब्द कीर्तन भजन गुंजार 

जिसे समझा ज्ञान ,बस तार तार //

28 फ़र॰ 2020

पत्थर सी राजनीति

ईमानदारी धर्म सद्भाव
ठेकेदारों ने खरीदे भाव
चढ़ गए सभी पर मुलम्मे
 हावी  हैं देखो राजनैतिक निकम्मे

न कोई दर्शन न सिद्धान्त
गरीबी अभाव से अभी भी क्लान्त
युवा चिल्लाते कहाँ रोज़गार
झंडे उठाते नारे लगाते बार बार

पत्थर सी राजनीति
पत्थर उठवाती है
देश भक्त  सीनों पर
गोली चलवाती है /
पंचतारा होटल में
देखो वो अय्याश
कितने ही घोटाले
न हुआ पर्दा फ़ाश /
विदेश भागेगा
मिलेगा उसे सकून
वो तोड़ती पत्थर
जलता रहेगा उसका खून /

हथियारों का व्यापारी
देखो एक हुई दुनिया सारी
कर लो सभाएं फोरम में चर्चाएँ
मुनाफ़ा कैसे हो नीति ये बनाएं //

वो तोड़ती पत्थर ,उठाती वज़न
उसे क्या पता क्या धर्म क्या वतन //
ये मुलम्मों  के ठेकेदार
करते रहे बस अनाचार
कहीं तो लगेगी दुकान ,बढ़ेगा व्यापार
गरीबों की जमीन पर लगेंगे फिर झंडे
जुलूसों में पड़ेंगे उन पर बस डण्डे //

आ धर्म खेलूं ,खेलूँ ईमानदारी
नये प्रतीकों से ,फलेगी ठेकेदारी
तिकड़मों के बाज़ार ,चीख़ता कामगार
नए नारे सजाता फिर वो ठेकेदार
कभी तो कोई इन्हें  फिर से जगा दे
विवेकानन्द के शब्द ------
"माँ मुझे मनुष्य बना दे "  //

9 फ़र॰ 2020

नव वर्ष

नव वर्ष
ज़िन्दगी का हर्ष
जो बीता सो बीता
सब कुछ कर लो रीता
नई सोच नई आकांक्षा
कर लो गहन मीमांसा
क्या पाया क्या खोया
कितने पलों को जिया
जीवन तो बस वही
तीव्रता हो छोटा ही सही
आओ फिर उड़ जाएं
नए काल मे फिर मुड़ जाएं
समय चक्र ये रुके न कभी
वो हुआ कभी जो है अभी
फिर भी वही तड़प चाव
बस दिखते रहे नए बदलाव
दिखते रहें दृश्य आभासी
कल अमावस आज पूर्णमासी
नवीन वर्ष में हो नया आल्हाद
जो कुछ मिला प्रभु धन्यवाद

8 मार्च 2019

बन जा आत्म घाती

वो नारों का शोर
अहंकार सी ख़ुशी
गैरत के नाम पर
बस कर लो ख़ुदकुशी //

आज़ादी के सपने
सियासत में भिगाये
मासूमों की  गुमराही
झूठी जन्नत दिखाए //

कमसिन नादान वो
पथ्थरों से खेलते
कौन है दोस्त दुश्मन
कभी न जानते //

बस पत्थर  उठायें
जन्नत को ढूंढते
काफिरों को मार
फ़ना की ही सोचते //

भोले नादान वो
ज़िन्दगी दांव लगाते
इंसानियत के दुश्मनों की
 साजिश न भांप  पाते //

हथियार का जखीरा
कोई तो मोल लेगा
हिन्दू या मुस्लिम
कोई तो लड़ेगा

वो गैरत के नाम पर
मासूमों को बरगलाते
जला न पाते  गरीब की  दिया बाती
बारूद बाँध बस बन जा  आत्म घाती //




 //



15 जुल॰ 2018

आई बरखा

आई बरखा
मस्ती  छलकी
मन मयूर मचला
 सुंदरी वो थिरकी/
बूंद बूंद फुहारें                        
बनी नरम चादर 
सूरज भी दुबका
बोल उठे दादुर/
बादल से मिले बादल
टकराए चमकें बिजली
भीग गए वस्त्र सब
मानस में उड़ती तितली/
आ नृत्य देख चंचल 
जा छोड़ सारे दलदल
मस्ती में थिरके भीगा तन
अब खूब मचले मेरा मन/"

23 अप्रैल 2018

प्राण प्रतिष्ठा


 मौन हुआ तो अन्तः शक्ति

बोल उठा तो अभिव्यक्ति /

नेत्र बंद फिर ध्यान लगाया
कल्पित देव , मन में ध्याया /

पूज आराधन  गुण गान
यही सहज था वही महान /

यही ,यही तो मनुष्य भाव है
पत्थर पूजें दिव्य भाव है /

मूर्ति बना यदि पूजा उसको
माना देवता ,भाव शक्ति को /
हम चेतन अव्यक्त रूप थे
प्रेम प्रीति के ऊर्ज रूप थे /
जड़ता के प्रेमी बन बैठे
इस शरीर में व्यक्त हो उठे /

मानो इश्वर कवि जैसा है
ऊर्जस्वित वह रवि जैसा है/

हम चैतन्य जड़ में स्थित
प्रेम प्रीति को करें विस्तरित /

जैसा स्रोत बने हम वैसे


ईश भाव की कविता जैसे //

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