वो वराह के दांतों में पृथिवी
इसी जल से तो निकली थी
अरी ओ माँ पृथ्वी
जल प्लावित पृथ्वी
मनु के शब्दों से गुंजित
मानवता का भान कराती
ओ चेतना की अनुभूति
ओ पृथ्वी बिन जल
क्षीर सागर का क्या
अस्तित्व हो पाता !
जल से जीव सृष्टि का ,
क्या फिर प्रारंभ हो पाता !
2 टिप्पणियां:
अति सुंदर ।
अति सुंदर ।
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