बस आधिपत्य ,धनोपार्जन ही कर्म /
मैं और मेरा ,यहाँ वहां साम्राज्य
परिवार हुए समूह, राष्ट्र बने राज्य //
यही तो युगों युगों से स्वार्थ का सपना
जो हो चतुर धनी ,वही सिर्फ अपना //
ऊंचे घरोंदे ,वो पत्थरों की बुलंदी
माटी के पिंजरे ,वहीँ आत्मा बंदी //
"आज की अभिव्यक्ति "(Hindi Poems) कवि नीरज की दैनिक अभिव्यक्ति का एक अंश मात्र.....Contact 9717695017
मै भारत का नेता हूँ नेता नहीं अभिनेता हूँ चमचे चिपकें जैसे गोंद धोती नीचे हिलती तोंद // मेरी तोंद बढे हो मोटी सारे चेले सेंक...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें