यूँ चली सांस
बढ़ती रही आस
अख़बारों के पन्ने
खबरें कुछ ख़ास /
देखो कालिखों का खेल
विज्ञापित हुई
प्रतिष्ठाओं की सेल /
आरोपों के झड़ी
वक़्त के साथ बढ़ी /
भ्रष्ट हुए तंत्र
फूला फला प्रजा तंत्र /
न कोई आदर्श या विचार
बस वही वह भ्रष्टाचार /
ईमानदारी से यूँ मुंह चुराओ
अनपढ़ों की नौकरी लगवाओ /
दस शातिरों को बनाओ ठेकेदार
वाह वाह करें सब
होयें भतीजे मालदार /
इसी तरह बनेंगे
अब "आम " से " ख़ास "
"भारत निर्माण " की
यही एक आस /
संदेह न करेगा
कोई भी रत्ती
गाडी मिलेगी
और ऊपर लाल बत्ती //
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