मुठ्ठी में लिए शब्द
बिखरा दिए आस्मा मे
छितराए से ,इतराए से
जा मिले सितारों से
सितारों की उदासी दूर
मैं फिर अकेला ,
नशे में चूर /
क्या है सबब ,
क्यूँ ये उदासी
ये चाहत है किसी की
या चाहत है ओढी सी ?
खेलूँगा फिर शब्दों से
दिखाऊंगा फिर छन्दो से
ओ दूर वालों ! देखो !
क्या क्या बुनने की नियत ,
रूमी की रूमानियत ,
ये ओढ़े हुए लिबास ,
नहीं यूँ शक न करो
में सच हूँ ,
नहीं हूँ आभास //
2 टिप्पणियां:
main sach hoon........nahi hoon abhaas........utkrisht.....kamal hai bikhraye shabdon ka...........
धन्यवाद् आभा जी
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