कानूनों के इस जंगल में ,
बीहड़ वन सा फंसता जाता ,
मतदाता हूँ प्रजा तंत्र का ,
हर भाषण में बँटता जाता /
देख गले का हार कानून ,
पढ़ ले इसका तू मज़मून ,
लोकपाल का बिल है ऐसा
मंदिर मूरत पूजा जैसा /
भ्रष्टाचारी हंटर लेकर ,
भ्रष्टाचार को दूर करेगा
और व्यवस्था फिर बदलेगी ,
चेहरे सिर्फ ;शरीर न बदलें ,
टोपी पहन ,टोपियाँ बदलें ,
कानूनों को फिर से रोंदे /
मेहनतकश की भूख न दिखती
गाँव गाँव पे कर्जा चढ़ता ,
मजदूरों की झुग्गी देखो ,
एक वक़्त ही चूल्हा जलता /
वो रिक्शा के पहिये जैसा ,
चलता जाता ,चलता जाता ,
मंजिल दूर नहीं है अब
रागनियों से दिल बहलाता /
आ लोकपाल अब रोटी दे दे ,
तेरी जेब अब और भरेंगे ,
भ्रष्टाचारी अब नए हंटर से ,
देशभक्त की चैन हरेंगे /
पेप्सीकोला के इस युग में ,
गाँधी बाबा रास न आते ,
लम्बी लम्बी कविताओं से तो ,
छोटे हाइकू सबको भाते /
तू पात पात ,में डाल डाल
आ गला फाड़ ,जन लोकपाल ,
सब कुछ देख लिया गरीब ने
ओ अमीर अब बदल चाल /
यह लोकपाल ,अब बने ढाल
कानूनों से बदले नेता चाल ,
कानून मुखौटे हैं शोषक के
मूल्य विहीन ,भ्रष्ट पोषक के ,/
मेहनतकश तो मेहनत करता ,
तिकड़म बाज़ तो जेब ही भरता ,
आ चल ना कर तू आज मलाल ,
छोड़ लबादे ,बन जा दलाल /
इन कानूनों की बीहड़ता में
जब तू भटकेगा ईमानदार,
यही दलाल पेटियां लेकर
तेरी नैया करेगा पार /
शोर मचेगा फिर शांत न होगा
सारा कलरव फिर उमडेगा ,
जा बैठ,कानून के उस गुम्बद पे ,
वो नए तंत्र को भेद न सकेगा /
उठा कुदाल हंसिया कर खट खट
तू अच्छा है यही लगा रट,
बुरा बुराई से बच ना सकेगा ,
कानून भी कुछ कर न सकेगा /
फसलों को फिर आग लगाता
तेरी भाषा कोई न सुनेगा ,
शामिल हो जा ,गा लोकपाल ,
कॉपोरेट, का नया जाल
गा लोकपाल ,उठा कुदाल
भर पेट उन्हीं का ,गा लोकपाल //
"आज की अभिव्यक्ति "(Hindi Poems) कवि नीरज की दैनिक अभिव्यक्ति का एक अंश मात्र.....Contact 9717695017
14 जन॰ 2012
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