16 जन॰ 2012

प्रेम का मौन !

मनुष्य के उस पार ,
मानवीय मस्तिष्क के पार ,
कुछ है ,जो समझ से परे है /
जो देखा वो माना !
जो सुना ,वो विश्वास किया ,
जो न जाना ,तर्क से परखा ,
जिसकी कोई सीमा नहीं ,
पुस्तकों शास्त्रों में बंद वो ,
मानवीय प्रेरणा ,निशब्द /
बुद्ध के मौन में मिला ,
शांत सब कुछ !
विस्फोट असीमित शक्ति सा ,
अनवरत तरंग सा ,
स्वयं को प्रकाशित करता /
में हूँ में हूँ का नाद करता ,
सब प्रश्नों को व्यर्थ करता ,
शांत सब कुछ ,भाव में वो
प्रेम के मौन में मिलता !

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