16 जन॰ 2012

प्रेम का मौन !

मनुष्य के उस पार ,
मानवीय मस्तिष्क के पार ,
कुछ है ,जो समझ से परे है /
जो देखा वो माना !
जो सुना ,वो विश्वास किया ,
जो न जाना ,तर्क से परखा ,
जिसकी कोई सीमा नहीं ,
पुस्तकों शास्त्रों में बंद वो ,
मानवीय प्रेरणा ,निशब्द /
बुद्ध के मौन में मिला ,
शांत सब कुछ !
विस्फोट असीमित शक्ति सा ,
अनवरत तरंग सा ,
स्वयं को प्रकाशित करता /
में हूँ में हूँ का नाद करता ,
सब प्रश्नों को व्यर्थ करता ,
शांत सब कुछ ,भाव में वो
प्रेम के मौन में मिलता !

6 टिप्‍पणियां:

Anamikaghatak ने कहा…

behtarin.....abhar

Isha ने कहा…

प्रेम की मौन भाषा बहुत कुछ कहती है......अद्भुत अभिव्यक्ति.....

https://ntyag.blogspot.com/ ने कहा…

THNX

https://ntyag.blogspot.com/ ने कहा…

thanx a lot :)

prakriti ने कहा…

अभिव्यक्ति ओर अनुभव दोनों ही दृष्टि में आप की पकड़ उत्तम है, यही नहीं बल्कि आपकी कवितायेँ मानव मन की गहराईयों के मौन को प्रस्तुत करती हैं! आप जीवन के सत्यो का आकलन कर, उनमे से चिरंतन पक्छ को ग्रहण और आत्मसात करते हैं, जो एक कलाकार का परम उदेश्य है, इस सुन्दर रचना के लिए मित्र !आपका बहुत बहुत आभार!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आप बहुत अच्छा लिखते हो!

Featured Post

नेता महान

मै भारत का नेता हूँ  नेता नहीं अभिनेता हूँ  चमचे चिपकें जैसे गोंद  धोती नीचे हिलती तोंद // मेरी तोंद बढे हो मोटी  सारे चेले सेंक...