23 फ़र॰ 2012

दहलीजों के पार बुला ले

चुपके चुपके झाँका करता
चेहरा चाँद नज़र आ जाता
दरवाजे की ओट खड़ा सा
फिर पीछे मैं हट सा जाता /
नयन सजीले नयन झुकाती
मंद मंद वो क्यूँ मुस्काती /तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से
कोमल स्वप्न सलोने लाती /
फूलों पर फिर उड़ें तितलियाँ
बदली गरजे ,गिरे बिजलियाँ
मौन होंठ भी कह ना पाते
कम्पन सा अन्दर भर जाते /
लुका छिपी ये आखिर कब तक
रहूँ खड़ा मैं आखिर कब तक
दूर दूर अब पास बुला ले
दहलीजों के पार बुला ले //


10 टिप्‍पणियां:

Isha ने कहा…

sunder ehsaas......

https://ntyag.blogspot.com/ ने कहा…

:)

Madhurendra ने कहा…

its awsome.. hw perfectly aapne sayonja hai apne words ko ki kaise "dahlejo ke paar bula le".. :) its really awesome. i shared it on twitter :)

संध्या शर्मा ने कहा…

लुका छिपी ये आखिर कब तक
रहूँ खड़ा मैं आखिर कब तक
दूर दूर अब पास बुला ले
दहलीजों के पार बुला ले //

वाह...बहुत सुन्दर है आज की अभिव्यक्ति...

Amrita Tanmay ने कहा…

स्निग्ध भावों को बिखेरती सुन्दर रचना ..

https://ntyag.blogspot.com/ ने कहा…

thnx

Naveen from Toronto ने कहा…

Beautiful...

babanpandey ने कहा…

प्यार में तो दहलीज़ पार करनी hi पड़ती है ... सुंदर रचना /
शुभ होली

lexengine ने कहा…

bahut khoob sir

https://ntyag.blogspot.com/ ने कहा…

धन्यवाद !

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