29 दिस॰ 2012

ओ निर्भया !

ओ निर्भया !
हिल गया हिमालया 
संभले न संभलती अब हृदय की पीर 
छलक उठे अश्रु ,बह उठे नेत्र नीर ,/
ये छह मानव  , पशु से भी बदतर 
ये  दानव हैं ,पशु भी इनसे  बेहतर /
क्रूर से भी क्रूर ,वो छह नशे में चूर ,
माँ याद करे किलकारी ,बेटी हुई दूर /
 बेटी के आर्तनाद से ,कांपी होगी धरा ,
आर्यावर्त देश ,बच्चे बच्चे का दिल भरा /
रात्रि में वोह   कालिमा थी बस ,
वो  बस में ,बेबस थी जस की तस /
अब वहां ना था कुछ शेष  ,
अरे मानव ! बस तेरा अवशेष  
बस तेरा अवशेष  !

4 टिप्‍पणियां:

Isha ने कहा…

marmsprshi bhav.......स्तब्ध ...निःशब्द...शोकाकुल...शर्मसार.....हम देशवासी

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

मन की पीड़ा की सुन्दर अभिव्यक्ति .http://kpk-vichar.blogspot.in & http://vicharanubhuti
में आपका स्वागत है.

https://ntyag.blogspot.com/ ने कहा…

thnx ji

asha sharma dohroo ने कहा…

Maramsparshi

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