ओ निर्भया !
हिल गया हिमालया
संभले न संभलती अब हृदय की पीर
छलक उठे अश्रु ,बह उठे नेत्र नीर ,/
ये छह मानव , पशु से भी बदतर
ये दानव हैं ,पशु भी इनसे बेहतर /
क्रूर से भी क्रूर ,वो छह नशे में चूर ,
माँ याद करे किलकारी ,बेटी हुई दूर /
बेटी के आर्तनाद से ,कांपी होगी धरा ,
आर्यावर्त देश ,बच्चे बच्चे का दिल भरा /
रात्रि में वोह कालिमा थी बस ,
वो बस में ,बेबस थी जस की तस /
अब वहां ना था कुछ शेष ,
अरे मानव ! बस तेरा अवशेष
बस तेरा अवशेष !
4 टिप्पणियां:
marmsprshi bhav.......स्तब्ध ...निःशब्द...शोकाकुल...शर्मसार.....हम देशवासी
मन की पीड़ा की सुन्दर अभिव्यक्ति .http://kpk-vichar.blogspot.in & http://vicharanubhuti
में आपका स्वागत है.
thnx ji
Maramsparshi
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