16 जन॰ 2012

ओ प्रकृति !

इधर उधर छटा सी बिखरी ,
गर्जन तर्जन ,
बादलों सी बिखरी ,
पर्वत सागर ,
वृक्षों के झुण्ड से ,
इधर उधर चंचल से ,
जीव जंतु ,
पानी या थल के ,
हरियाली या मरुथल ,
बिखरी इधर उधर ,
देख वो अमराई सी ,
प्रकृति ,
ओ प्रकृति !

3 टिप्‍पणियां:

Isha ने कहा…

सुंदर चित्रण ......प्रकृति अपने चाहने वालों को निराश नहीं करती, इसका साथ ही सबसे प्यारा..

https://ntyag.blogspot.com/ ने कहा…

धन्यवाद प्रिय !

prakriti ने कहा…

चाँदनी ओढ़ धरा साई, कितनी सुन्दरता से प्रकृति'' का वर्णन कर गया कोई...प्यार से भींगा प्रकृति का गात साथी, आपकी क्या तारीफ करूँ ? आपकी है क्या बात साथी'...

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