29 दिस॰ 2012

ओ निर्भया !

ओ निर्भया !
हिल गया हिमालया 
संभले न संभलती अब हृदय की पीर 
छलक उठे अश्रु ,बह उठे नेत्र नीर ,/
ये छह मानव  , पशु से भी बदतर 
ये  दानव हैं ,पशु भी इनसे  बेहतर /
क्रूर से भी क्रूर ,वो छह नशे में चूर ,
माँ याद करे किलकारी ,बेटी हुई दूर /
 बेटी के आर्तनाद से ,कांपी होगी धरा ,
आर्यावर्त देश ,बच्चे बच्चे का दिल भरा /
रात्रि में वोह   कालिमा थी बस ,
वो  बस में ,बेबस थी जस की तस /
अब वहां ना था कुछ शेष  ,
अरे मानव ! बस तेरा अवशेष  
बस तेरा अवशेष  !

17 अक्तू॰ 2012

"लाल बत्ती"

यूँ चली सांस 
बढ़ती  रही आस 
अख़बारों के पन्ने 
खबरें कुछ ख़ास /
देखो कालिखों का खेल 
विज्ञापित हुई 
प्रतिष्ठाओं की सेल /
आरोपों के झड़ी
वक़्त के साथ बढ़ी /
भ्रष्ट हुए तंत्र 
फूला फला प्रजा तंत्र /
न कोई आदर्श या विचार 
बस वही वह  भ्रष्टाचार /
ईमानदारी से यूँ  मुंह चुराओ 
अनपढ़ों  की नौकरी लगवाओ /
दस शातिरों  को बनाओ ठेकेदार 
वाह वाह करें सब 
होयें  भतीजे मालदार /
इसी तरह बनेंगे 
अब "आम " से " ख़ास "
"भारत निर्माण " की 
यही एक आस /
संदेह न करेगा 
कोई भी रत्ती 
गाडी मिलेगी 
और ऊपर लाल बत्ती //

3 सित॰ 2012

आह !

उन्मुक्त गगन 
बादल सघन 
उड़ते पक्षी 
करते नर्तन 
दो पंखो से 
लहराते से ,
असीम आकाश 
 छूने की चाह ,
ओह लघु जीवन !
ओह यह आह !

5 अग॰ 2012

"चल भ्रम उड़ जा "

अब शोर बीच यूँ
कुछ तो बोलो 
इस चुप्पी को 
कुछ तो खोलो /
ढूंढ रहा यूँ 
कब से तुमको 
धुंध हटा अब 
देख  उजाला  
इस जग में 
मत रह  मतवाला 
आँख नशीली 
खोल ,  बोल अब  /
यही रहस्य तो 
यही  सौंदर्य  है /
अब भ्रम उड़ जा 
उड़ बादल सा 
आ यथार्थ अब 
दूर उड़ा जा 
स्वप्न चिरैया 
दूर कहीं अब 
आ प्रभात रवि 
उद्भासित कर जा 
चल भ्रम उड़ जा /

30 मई 2012

" प्रेयसी "

साथ तेरे 
रोदन 
साथ तेरे 
क्रीडा 
यहाँ 
वहां 
जहाँ 
तहां ,
परछाई सी 
तू  है 
तू ही 
जीवन का रस 
प्रेम !

28 मई 2012

"अनुभव "

मौन 
एक प्रार्थना 
जीवन 
एक आराधना 
सामीप्य तुम्हारा 
बस 
एक उपासना //

12 अप्रैल 2012

रच पाओगे ?

अब यह  तुमने 
क्या  कह डाला 
इश्वर को "कल्पित "
कह डाला ?
सोचो -रचा 
उसीने तुमको /
क्यूँ भूले वह  
रचता सबको ?
तुम अब  रूप ही 
उस का रचते /
जैसा रचते 
वैसा बनते /
फिर  तुम हो 
अंश मात्र ही ,
रचना उसकी 
नाम मात्र ही /
उसको तो क्या 
रच पाओगे 
क्या अपने को 
रच पाओगे ?

26 मार्च 2012

ये परखा तो

कौन कहाँ कैसा है प्याला 
ये परखा तो कैसी हाला 
परख परख मत बुन ये जाला 
पंछी बन उड़ पंखों वाला 
प्रेम सुरा पी बन मतवाला  //

"मैं"गया किधर?

एक अजनबी अनजाना सा 
नयन मिल गए फिर जाना सा ,
बार बार क्यूँ दृष्टि  उधर ही 
हर दृष्टि "मैं"गया किधर ही !
मूक नयन जादू कर जाते 
दृष्टि प्रेम का रस भर जाते /
नयन नयन से क्यूँ लड़ जाते 
बिन साकी प्याला भर जाते /
आ प्रियतम अब इसको पी लें 
भंग सुरा बिन मस्ती जी लें //

18 मार्च 2012

बंदी आत्मा

न मूल्य न चरित्र ,न धारणा न धर्मं
बस आधिपत्य ,धनोपार्जन ही कर्म /
मैं और मेरा ,यहाँ वहां साम्राज्य
परिवार हुए समूह, राष्ट्र बने राज्य //
यही तो युगों युगों से स्वार्थ का सपना
जो हो चतुर धनी ,वही सिर्फ अपना //
ऊंचे घरोंदे ,वो पत्थरों की बुलंदी
माटी के पिंजरे ,वहीँ आत्मा बंदी //

15 मार्च 2012

दृश्य शक्ति

सूरज !
क्या कभी छिपता है ?
चाँद !
क्या कभी घटता है ?
ये तो हम हैं
और हमारी दृश्य शक्ति
उतना उजाला
जितनी शक्ति //

14 मार्च 2012

मैं

मैं लहर सा
एकत्र हुआ
व्यक्त हुआ
फिर विलीन
कहीं और
कोई और
किसी और
कला में
व्यक्त होने के लिए //

12 मार्च 2012

"छा जाता"

नदी चपल सी
समुद्र में समाती
समुद्र गंभीर
गहन विस्तरित
ज्वार भाटों से अविचल
लहरों को सहता
शांत ,सम भाव सा
सब कुछ समा लेता
जहाँ नहीं है वहां भी
बादलों से ,
छा जाता //

11 मार्च 2012

"चेहरा "

हर रोज़ नज़र आता , भोला नया सा चेहरा
वो हुस्न की बला सा ,नज़रें गड़ाए चेहरा //
अब एक ही नज़र पे ,वो मुस्कुराये चेहरा
ये मेरी शायरी है ,क्यूँ शरमाये चेहरा //
पेश किया जो गुल को ,गुलाबी हुआ वो चेहरा
दिल को कब औ कैसे ,चुरा गया वो चेहरा //
चेहरे को खूब खोजा , दिखता तुम्हारा चेहरा
हर चेहरे में छुपा सा , ज़ाना तुम्हारा चेहरा //
बाज़ार में तो यूँ भी ,चेहरे पे एक चेहरा
प्याज की वो मानिंद ,अब परत परत चेहरा //
पर वो गुलाब चेहरा ,जाना तुम्हारा चेहरा
नज़रें हटा ना पाऊं ,ये बे-हिजाब चेहरा //
अब आशियाने में भी , लो पुत गया है चेहरा
बहुत हो चूका अब , ज़ाना हटा दे पहरा //
अब ख्वाब आस्मां के , क्यूँ उदास चेहरा
अब उर्दू में कहा है , क्या यूँ ही सुर्ख चेहरा //

7 मार्च 2012

"इस होली तू लगती न्यारी "

इस होली तू लगे अनूठी
रंग खेले ना अब क्यूँ रूठी ?
ला गुलाल अब खेलूं होली
मस्त हुई रंगों की टोली
धूलिवंदन बिन भंग अधूरा
तू मद मस्त रंग है पूरा /
ला टेसू रंग ,सारा रंग दूँ
अंग बचे ना ,अंगिया रंग दूँ
उधर कहीं तू छुपती कब तक
पिचकारी से बचती कब तक ?
बच्चे दूर वहां किलकारी
अब रंग रंगी लगी तू प्यारी
ना भाग कहीं तू खा पिचकारी
इस होली तू लगती न्यारी //

6 मार्च 2012

मिलन करा या पास बुला जा

ओ आसमान अब नीचे आ जा
इस धरती को यूँ ना तरसा
ना जाने कब से ये धरती
घूम घूम कर ढूंढ रही है
सूर्य देव अब दे वर दे दे
पृथ्वी को अपना प्रिय दे दे /
तुम प्रेम पीर को क्या समझे
वोह आसमान को वर समझे
नित सूर्य अग्नि फेरे चाहत के
नित नए भाव नयी ऋतुओं के /
ये धरती कुछ माँगा करती
क्यूँ बादल से ही अर्ध्य चढ़ाती/


वो जंगल धूँ धूँ क्यूँ जलते
इस धरती के बीचों बीच /
निशा काल में क्यूँ लहराती
ये आँचल सी तारों बीच /
ये धरती की ही विरह अग्नि
क्या दावानल बन जाती है
जब धरती रुक रुक रोती है !
क्या तभी सुनामी आती है ./

ओ चाँद उतर अब नदिया आ जा
इस धरती को कुछ समझा जा
अब रात अमावस यूँ ना खो जा
मिलन करा या पास बुला जा //

3 मार्च 2012

"अहंकार "

मैं अद्वितीय
कहीं विशेष
समग्र सृष्टि से
न जुडा शेष ,
यही यही जब
भ्रम को पाला
इसी अहम् ने
फिर डस डाला //

1 मार्च 2012

"अस्तु देवता "

जैसा हम सोचा करते हैं
वैसे ही हो जाया करते /
प्रतिपल दिव्य हमारे मानो
उन्हीं देव को उनमे मानो //
"अस्तु देवता " यत्र-तत्र सब
कहें "तथास्तु" पूर्ण करें सब /
भला बुरा यदि , कहा अनजाना
वही "तथास्तु " हुआ यह जाना //

तब याद तुम्हारी आये

मेरा चाँद आज क्यूँ खोया
ये आसमान क्यूँ सोया
जब भ्रमर कुमुदिनी डोले
दिल उठे हिलोर यूँ हौले
वहां दूर कहीं कोई गाये
दिल उमड़ उमड़ सा जाये
चहुँ ओर बसंत लहराए
यौवन मदमस्त गदराये
तब याद तुम्हारी आये
तब याद तुम्हारी आये //

28 फ़र॰ 2012

प्रेम लय

वो जब जब ख्वाबों में आती
नए नए रूपों में आती
प्रेम कुञ्ज में बैठे होते
शांत मौन कुछ कहने आतुर
एक शब्द भी कह न पाते
शब्द शब्द ही बने महत्व का
पलकों में जुगनू से दीखते
अश्रु मोती बन ढल जाते
यू सब कहा अनकहा होता
मौन नयन मोती कह जाते
होंठों के कम्पन सी वो लयप्रेमी उस लय में रम जाते //

23 फ़र॰ 2012

दहलीजों के पार बुला ले

चुपके चुपके झाँका करता
चेहरा चाँद नज़र आ जाता
दरवाजे की ओट खड़ा सा
फिर पीछे मैं हट सा जाता /
नयन सजीले नयन झुकाती
मंद मंद वो क्यूँ मुस्काती /तन्द्रिल आँखों में मधुरिम से
कोमल स्वप्न सलोने लाती /
फूलों पर फिर उड़ें तितलियाँ
बदली गरजे ,गिरे बिजलियाँ
मौन होंठ भी कह ना पाते
कम्पन सा अन्दर भर जाते /
लुका छिपी ये आखिर कब तक
रहूँ खड़ा मैं आखिर कब तक
दूर दूर अब पास बुला ले
दहलीजों के पार बुला ले //


21 फ़र॰ 2012

मै नशे में

शब्दों को बुन कर
भावों को चुनकर
लिखूं एक तराना
वही वह पुराना /
दो प्रेमियों की
फिर वो कहानी
न मेरी जुबानी
न तेरी जुबानी /
मस्ती तुम्हारी
कुछ मस्त में भी ,
बसे यहाँ बस्ती
वही प्रेम मस्ती /
रुनझुन सी पायल
करे दिल को घायल /
नज़र ना हटे ये
ये आँखों का जादू
मजबूर तुम हो
मजबूर मै हूँ /

जहाँ तुम नशे में
वहीँ मै नशे में //

20 फ़र॰ 2012

महा रात्रि ये पार्वती की

चतुर्दशी यह
घोर रात्रि ,
महा रात्रि यह
शिवा रात्रि /
याद फिर वह
नृत्य शिव का
लय-प्रलय को
लीलती सी /
फिर वही वह
घोर रौरव
शिव त्रिनेत्री
शिवा तांडव /
माह फाल्गुन
महा रात्रि
फिर वही वह
शिवा रात्रि /
देख दूल्हा
शिव बना फिर
काल भैरव ,
शिवा रौरव
चल पड़े
नरमुंड कितने !
सुर असुर औ
बुरे कितने !
यही है बारात उसकी
महा रात्रि ये पार्वती की //

18 फ़र॰ 2012

स्वीकार कर ले

ओ पथिक तू सोच खोया
मौन है क्या जाग रोया ?
पीर है ये तीर सी है
आँख गीली नीर सी है /
देख वो भी कहाँ सोती !
रख संजो ले नयन मोती /
जा कहीं मनुहार कर ले
ओ पथिक स्वीकार कर ले
तू अकेला न था सृष्टि का
बूँद भर था उसी वृष्टि का
जा कहीं सत्कार कर ले
प्रेम को स्वीकार कर ले /
ओ विरागी धूमकेतु !
गतिमान तीव्र कहाँ किस हेतु ?
आ यहाँ विश्राम कर ले .
प्रेम को स्वीकार कर ले ,
नृत्य कर ले ,गीत गा ले
छोड़ गति तू धुरी पा ले /
ओ पथिक स्वीकार कर ले ,
जा कहीं मनुहार कर ले /

16 फ़र॰ 2012

न तू अधूरी

न तू अधूरी
न मैं अधूरा
किन्तु कहाँ कैसे हम
कहें स्वयं को पूरा ?
कहीं ,कहीं तो कुछ है
नहीं ,नहीं है मुझ में
कहीं खोजता सा
कहीं खींचता सा ,
नया न कुछ बनाता
नया न कुछ कहता ,
फिर उसी मिलन से
फिर वहीँ समाता /
प्रकृति के नियम सा
फिर रचूँ अधूरा ,
न तू उधर पूरी
न मैं इधर पूरा/

14 फ़र॰ 2012

कहीं तुम दूर बैठे हो

कोई आवाज देता है
कोई फिर याद करता है
कहीं वो दूर होकर भी
वही फरियाद करता है
वो बदली का एक टुकड़ा
या फिर सन्देश उसका है /
ये परिंदे दूर उड़ते हैं
कहीं तुम तक ही जाते हैं ,
उधर ये चाँद कैसा है
कहीं तुम उसके पीछे हो
ये सितारे मुस्कुराते हैं
कहीं इनमे बस गए हो ,
ये गूंजे फूलों पे भंवरे
नया कुछ आज कहते हैं /
ये तितली क्यूँ लगे प्यारी
हवा में खुशबू सी न्यारी /
ये कोंपल कुछ तो कहती है
ये शाखें झूल जाती हैं
कहीं शब्दों में तुम छिप कर
नई कविता में दीखते हो
कहीं तुम दूर बैठे हो
मुझे आवाज देते हो /
तुम्हारे साथ के वो पल
यहीं बस तुम ही थे हर पल ,
वो पल अब उड़ते जाते हैं
वो पल अब याद आते हैं /
कहीं तुम दूर बैठे हो
मुझे आवाज देते हो /

11 फ़र॰ 2012

कभी तुम याद आते हो

कभी तुम याद आते हो
कभी तुम यूँ रुलाते हो
ये ऑंखें आंख से मिलकर
नया रिश्ता बनाती हैं /
कहीं तुम दूर यादों में
कहीं तुम पास बाँहों में
ये ऑंखें कैद करती हैं
ये आँखें भूल न पायें /
कहीं से चाह उमड़ती है
कहीं तितली सी उडती है /
कहीं वो प्यार की बदली
बिना बरसे घुमड़ती है /
बिना गरजे ही कहती है
तुम्हारी याद आती है
मुझे दिल में सताती है
वो दिल में छा ही जाती है /
ये दिल यूँ मचलता है
समंदर लहरों से मचले
ये आँखें यूँ बरसती हैं
की बादल भी बरसता है //
कभी तुम याद आते हो
कभी तुम यूँ रुलाते हो //

10 फ़र॰ 2012

नयन प्रेम

मैने तुझे चाह से देखा !
तुने मुझे चाह से देखा /
नयनों से जब नयन लड़े तो
नयन नीर ने कहा अनकहा /
दूर दूर से दूरी मिटती
नयन दृष्टि फिर क्यूँ हटती /
नयन नीर ही सब कह जाते
नयन ,नयन से प्यास जगाते/
सब कुछ पहले अनजाना था
आज अचानक जान गए सब
जैसे पूर्व जन्म से जाना था
ये सब कैसे हुई प्रतीति
ये रिश्ता तो अनजाना था /
नयन नयन की ये क्या रीत
मेरी हार बन गयी जीत /
आ कुछ बैठ कहीं बतियाएं
प्रेम कुञ्ज में पींग बढ़ाएं /
मौन समीप कहीं कुछ कहूँ
जहाँ जहाँ तू वहीँ बस रहूँ /

7 फ़र॰ 2012

अस्तित्व

आ !
शोर मचा लें ,
दखें जो सब तुझे
तेरे अस्तित्व को
लगे तू भी एक रंग है
उसी इन्द्र धनुष का
व्योम में दृश्यमान !
अभी था
फिर होगा
फिर न होगा /

बात

इधर की बात करते हैं
उधर की बात करते हैं
बात में बात ,बात की बात
हर कविता में ,नयी एक बात
शब्दों को पिरोकर फिर फिर
उन्ही शब्दों से बात करते हैं !

मिटा दें

आ कर बात ,
तिमिर की
उजाले तो हैं ही
यहीं हैं
दीप जला लें वहां
अँधेरे छुपे हैं जहाँ
ढूंढ टुकड़े तिमिर
वहीँ मिटा दें
दीप जला दें !

3 फ़र॰ 2012

रहस्य ही सौंदर्य

आज तुम फिर बिसराओगे ,
समझते हुए भी न समझोगे ,
कहीं दूर टकटकी लगाओगे,
विशाल क्षितिज के उस पार,
दृष्टि तुम्हारी भेदती सी ,
अनंत काल के रहस्य को !
किन्तु फिर वही,फिर वही
झंझावातों में फंसकर ,
तुम फिर अनवरत प्रयासरत ,
अपनी स्थितप्रज्ञता के लिए ,
वही गीता या योग वशिष्ठ ,
तुम्हारे झरे स्वप्नों को
थामते-थामते ,
फिर वही सशक्त ,
रहस्यमय शब्द !
क्योंकि रहस्य ही
तो पूर्ण सौंदर्य है !

कस्तूरी

मैने शब्दों में
बांधा था उसको
भाव प्रकट भी
कर ना पाया
सोचा
कहा
जाना भी था
शब्द कहीं से
मिल ना पाया /
नए नए कोपल
से लगते
शब्दों को मैं
फिर से चुनता
चुन चुन कर भी
जाता न पाया
भाव समेटे इतने
फिर भी
भाव प्रकट भी
कर ना पाया /
लिखे ग्रन्थ ,
पद्य औ गद्य
शब्दों की टंकार
गुंजाई ,
सोचा ,कहा ,जाना
मगर फिर भी
उसको कहीं
प्रकट न पाया /
तभी ,तभी तो
बार बार फिर
रूप बदलते
इसी सृष्टि के कण ,
सूछ्म विराट
विलुप्त भी होते /
किन्तु प्रकट वह
कहीं न होता
सीप मोती सा
छिपा हुआ वह
रहस्य बना वह
सुन्दर होता

शब्द माल को
अर्पित करते
कस्तूरी मृग
जैसे हम
इधर उधर फिर
विचरण करते
भाव सुगंध से
भाव समेटे
किन्तु कहीं वह
प्रकट न पाते //

2 फ़र॰ 2012

"क्या लिखें"

क्या लिखें ,
क्या कहें ,
और सुने
किस को ?
ये जीवन अब ,
बन गया ,
दुनिया का डिस्को !
खाएं पीयें
मौज उड़ायें ,
सो जाएँ /
जिम में जाएँ
वज़न घटायें /
ज्यादा गर सोचा तो
धमनियां बढ़ जाएँगी
जो न सोचा वो सोचोगे
टेंशन बढ़ जाएगी /
इसीलिये भूल जाओ
संस्कृति औ संस्कृत को
मै कोक हूँ वो केक है ,
भूलो पुरातन सब ,
अपना लो यही ,
पेप्सी कोला
कल्चर को //

30 जन॰ 2012

राम

राम कथा हैं ,
राम पुरुष हैं ,
राम चरित हैं
राम बनवास /
रावण वध को
त्याग तपस्या ,
जन जन की
वोह बन गए आस /
भ्रात्र प्रेम का
मात्र प्रेम का
गुरु भक्ति ,
आदर्श राज्य का /
पशु पक्षी भी
बच न पायें
राम प्रेम को
भूल न पायें /
दहन हुआ फिर
राक्षसता का
देवत्व विजित फिर
स्वर्ग सुगंध सा
संहारों से मुक्ति देते
राम हमारे ,
सब सुख देते
सब सुख देते /

29 जन॰ 2012

आ बसंत

पीली धरती !
सरसों बरसी !
चंचल मन ,
तितली मचली,
भँवरे गूंजे
डाली डाली ,
पक्षी झूले /
रूठी कोयल ,
कलरव अनंत ,
आ बसंत ,
आ बसंत /

"आसमान '"

आसमान से बातें कर लें ,
बादल को फिर मित्र बना लें ,
पूछें -क्यूँ रोता है ?वर्षा करता ,
अश्रु रोदन के या हर्षित होता /
पक्षी कलरव करते उड़ते ,
पंक्ति जैसे कविता लिखते ,
बादल बीच सूर्य झरोखा ,
चन्द्र दिखाता अंश खेल का ,
तारे छितराए से !
जन्म मृत्यु को प्राप्त हुएय से ,
आदि शब्द था ,अंत न उसका ,
शब्द खेल है संघातों का ,
अन्दर बाहर,प्रेम पीर का !
इसी प्रेम से उपजी सृष्टि ,
इसी प्रेम की हम पर दृष्टि /

26 जन॰ 2012

"ये गणतंत्र"

आ मनाएं ,
दिवस गण तंत्र ,
गण तो रूठा
भ्रष्ट हुआ तंत्र /
पार्टियाँ बदलते ,
वो बन गया मंत्री
परेडों से सलामी से
पद्म श्री ,पद्म विभूषण
भूला न गया आज भी
वो कारगिल का सन्तरी/
भ्रष्टाचार बना आचार,
लोक तंत्र का बना अचार/
इधर गुटबाजी ,उधर माफिया
नेता जिया ,सिर्फ धन के लिए जिया /

आ मनाएं ,
दिवस गण तंत्र ,
मान सरोवर ,कैलाश पर्वत
आधा कश्मीर औ पूरा तिब्बत ,
चीन पाक के कब्जे में परतंत्र ,
आ मनाएं ,
अपना ये गण तंत्र //

24 जन॰ 2012

"कालजेय"

कभी कभी यह ,
सोचा करता !
अगर काल यह ,
रोका जाता !
प्रतिपल मुठ्ठी ,
हाथ बढाकर ,
उड़ते पल को !
पकड़ा करता ,
मुठ्ठी खोल ,
पलों को फिर !
तितली जैसा ,
खूब उड़ाता /
चाहे जब ,
आनंद मनाता
चाहे जब ,
मुखरित हो जाता /
कालजेय सा ,
छाती ताने ,
स्वप्न स्वयं के ,
सच कर पाता//

23 जन॰ 2012

"व्यक्त कर ले"



कौन कहाँ ,
दूर कितना !
सोच भर ले !
गमन कर ले ,
व्यक्त कर ले ,
समय कम है ,
कलम से ही ,
अभिव्यक्त कर ले !
सोच का गमन तेरा ,
देख चेतन ,
या अचेतन ,
प्रवाह के ,
प्रभाव से ,
सृष्टि के ,
विश्वास से !
दूर तक तू ,
गमन कर ले !
आज तू अभिव्यक्त कर ले /
आज का अस्तित्व तेरा ,
व्यक्त कर ले ,//

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